आज एक आदत साथ लिए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ
पांच साल पहले आया जो था मन मार के
आज उसे ही यादों से भारी किए जा रहा हूँ.…
आधी रात में दोस्तों की अमूमन 'बकर '
अगली सुबह आठ बजे का लेक्चर
गुरु की शिक्षा और ज़िन्दगी के अमूल्य अनुभव
सब कुछ पिटारे में बंद किये जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा हूँ...
घाट पे घूमना आज बहुत याद आ रहा है
अस्सी का सूरज आज थोड़ा फीका लग रहा है
उसे भी शायद लग गया होगा
की आज रूँधा गला लिए जा रहा हूँ
बम बोल रहा बनारस
भांग घोल रहा बनारस
आज विश्वनाथ की भूमि से विदा लिए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ
पान का कुछ पीला बनारसी पत्ता
उसके ऊपर गुलकंद, चूना, कत्था
खाया तो नहीं है आज़तक
पर अब स्वाद लिए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ
मलैय्यो का स्वाद, टमाटर चाट
पूड़ी सब्ज़ी का नाश्ता, कचौरी आठ
आज के बाद वक़्त कहाँ
इसलिए भरपेट खाए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ.…
मालवीय जी की धरोहर, संकटमोचन की भूमि
गंगा की धारा, महादेव की भक्ति
सबके आगे शीश झुकाए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ...
आज गौधोलिया की भीड़ क्यों कम सी है
चौक की ठंडाई में भी मिठास कम है
अजी उन लौंडों को कौन समझाए
मैं अपने साथ काशी की रूह लिए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ....
कहते हैं यहाँ मरने पे मोक्ष मिले
रहना स्वर्ग से कम नहीं
अमां किसे परवाह है जन्नत की
मैं तो गंगा में ही डुबकी लगाये जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ....
कहानियां सुनाने में तो सदियाँ बीत जाए
इस काशी को तो विद्वान-पंडित भी कहाँ समेट पाए
मैं तो बस पलकों पे आए आंसुओं की ज़ुबानी लिखे जा रहा हूँ
दशाश्वमेध की गंगा आरती से ज्योति लेके
हर हर महादेव के जयकारे लगाके
कोतवाल काल-भैरव की आज्ञा लगाके
आज यह काशी-यात्रा संपन्न किए जा रहा हूँ
आज एक आदत साथ लिए जा रहा हूँ
अपने साथ इह बनारस लिए जा रहा हूँ।
॥ हर हर महादेव ॥